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होली के त्योहार को महज कुछ ही दिन रह गए हैं, ऐसे में होली का जिक्र हो और बात कृष्ण की जन्मभूमि मथुरा की ना हो, फिर तो होली का रंग ही फीका है, क्योंकि होली के असली रंग तो नंदलाल की नगरी मथुरा में ही है। मथुरा में ही तो राधा और कृष्ण कन्हैया ने अपने प्यार के रंगों से सारे देश को सराबोर किया था। तो आइए आज मथुरा की होली के बारे में जानते हैं।
जानिए कैसे हुई थी लट्ठमार होली की शुरूआत | Happy Holi
40 दिन पहले होती है होली की शुरुआत
राधा और कृष्ण के प्रेम की नगरी मथुरा ऐसी जगह है, जहां रंगों का त्योहार बेगानों को भी अपना बना देता है और आसमान में खुशियों के रंग बिखेर देता है। मथुरा की होली इतनी प्रसिद्ध है कि लोग दूर विदेशों से भी खींचे चले आते हैं। यहां होली के 40 दिन पहले से ही होली की शुरुआत कर दी जाती है। महिलाएं 40 दिन पहले ही रोज एक दूसरे को गुलाल लगाती हैं। हर घर में गुजिया बनती है। सड़कें रंगों से रंग जाती है। नंदलाल के धाम द्वारकाधीश में हर रोज सुबह 6 बजे आरती के बाद लोग एक दूसरे को गुलाल लगाते हैं।
जानिए कैसे हुई थी लट्ठमार होली की शुरूआत | Happy Holi
सदियों से चल रही परंपरा
कहा जाता है कि हजारों साल पहले मथुरा में राधा रानी को कृष्ण और उनके सखा परेशान करने के लिए रंगों से रंगते थे। श्री कृष्ण सांवले थे और वो राधा के गोर रूप को लेकर उनसे चिढ़ते थे। इसलिए कृष्ण अक्सर राधा के ऊपर रंग फेंका करते थे। भगवान श्री कृष्ण अपने दोस्तों के साथ राधा को रंग लगाने जाते थे, जिसके बाद राधा और उनकी सखियां रंग से बचने के लिए बांस की लाठियों से उन्हें दौड़ाती थीं, तभी से लट्ठमार होली बरसाना की परंपरा बन चुकी है।
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हुरियारों पर बरसती है प्रेम पगी लाठियां
मथुरा स्थित नंदगांव में लट्ठमार होली की शुरुआत हो चुकी है। हर साल नंदगांव के हुरियारे (पुरुष) होली खेलने के लिए निकलते हैं तो उधर हुरियारिनें (महिलाएं) सज-धजकर होली खेलने के लिए पूरी तैयारी से निकलती हैं। हुरियारे हुरियारिनों से हास-परिहास करते हैं। हास-परिहास ऐसी कि हुरियारिनें प्रेम से हुरियारों को घेर-घेर कर तड़ातड़ लाठियां बरसाती हैं। हुरियारे ढाल से लठ के वार का बचाव करते हैं। इधर दनादन प्रेम पगी लाठियों के हमले और रंगों की फुहार के बीच के अद्भुत नजारे का साक्षी बनने के लिए हजारों किमी से देखने के लिए लोग पहुंचते हैं।
जानिए कैसे हुई थी लट्ठमार होली की शुरूआत | Happy Holi
लोग उमंग के साथ मनाते हैं होली का त्योहार
नंदगांव की होली के अगले दिन ब्रज में रंगभरी एकादशी धूमधाम से मनाई जाती है। इसके बाद वृंदावन में पांच दिन तक यानी फाल्गुन एकादशी से पूर्णिमा तक बांके बिहारी मंदिर में सुबह-शाम गुलाल, टेसू के रंग और इत्र व गुलाब जल आदि से जबरदस्त होली खेली जाती है। राधा रानी और कृष्ण ने जिस तरह से सदियों पहले नटखट तरह से होली के त्योहार को अपने प्यार के रंगों से रंगा था, हजारों साल बाद आज भी मथुरा में लोग इसी खुशी और उमंग के साथ इस त्योहार को मनाते हैं। (इनपुट- PBNS)