मानसून आते ही देश के तमाम बड़े शहर जलमग्न हो जाते हैं। यहां तक की विकसित शहरों के ‘पानी पानी’ होने की खबरें सुर्खियों में रहती हैं। वहीं मानसून आते ही पहाड़ों में बाढ़ में और लैंडस्लाइड से तबाही मच जाती है। इससे ना केवल वित्तीय नुकसान हो रहा वहीं कई लोगों की जान भी जा रही है। ऐसे में इस बात पर गौर करने की जरूरत है कि आखिर ये बारिश आफत बनकर क्यों बरस रही है?
विशेषज्ञों के मुताबिक मानसून की बारिश की मात्रा में तो कोई खास फर्क नहीं है लेकिन मानसून के पैटर्न में काफी फर्क देखने को मिल रहा है। भारत में होने वाली वार्षिक वर्षा में जून, जुलाई और सितंबर महीनों में मानसूनी बारिश का योगदान घट रहा है जबकि अगस्त की वर्षा का योगदान बढ़ रहा है। साधारण शब्दों में समझे तो पहले चार महीने में जितनी बारिश होनी थी अब उतनी बारिश एक महीने में हो रही है। यही कारण है कि पिछले कुछ सालों में एकाएक बारिश से भूस्खलन और अचानक आई बाढ़ से संबंधित आपदाओं का सिलसिला बढ़ता जा रहा है।
मानसून के स्वरूप या पैटर्न में आ रहे बदलवाों को सीधे-सीधे जलवायु परिवर्तन एवं ग्लोबल वार्मिंग से जोड़कर देखा जा रहा है। वहीं अनियोजित विकास की वजह से भी बारिश के दौरान भीषण आपदाएं हो रही हैं। बारिश से होने वाली आपदा को रोकने वाली प्राकृतिक सुरक्षा को हमने नष्ट कर दिया है। नदी, तालाबों के किनारें हमने सड़कें, इमारतें और कंक्रीट वर्क कर दिया है। ऐसे में बारिश का पानी जाएगा कहां? वो घरों में घुसेगा और नुकसान करेगा।
अंदेशा है कि अगर वक्त रहते हालात को रोकने के व्यापक प्रबंध नहीं किए गए तो आने वाले समय में बारिश से होने वाली आपदाएं भयंकर रूप धारण कर सकती है। ऐसे में वक्त रहते सचेत होने की जरूरत है।
इनपुट- (दैनिक भास्कर- देबादित्यो सिन्हा, संस्थापक- विंध्य इकोलॉजी एंड नेचुरल हिस्ट्री फाउंडेशन)